शत्रु के ऊपर आक्रमण करना।।
कुछ चीजें हैं जो परमेश्वर की ज़िम्मेदारी है और कुछ हमारी ज़िम्मेदारी है। उदाहरण के लिए उद्धार - मुक्त्ति के लिए एक पहलू मनुष्य का है और एक पहलू मुक्त्ति के लिए परमेश्वर का है। हम वो नहीं कर सकते जो परमेश्वर कर सकता है; हम वही कर सकते हैं जो हम कर सकते है, पर हमारी भी एक ज़िम्मेदारी है।
बहुत सारे चर्च यह सिखातें है कि जो कुछ भी हमारी जिंदगी में होता है वह परमेश्वर की मर्ज़ी और उसकी पहले से ठहराई हुई योजना है; आपके साथ जो कुछ भी होता है वह परमेश्वर की योजना है। यह सुनने में बहुत सुंदर लगता है, पर यह बिल्कुल झूठ है। बाईबल बहुत साफ़ रीति से बताती है कि एक शत्रु है जो मसीहियों का विरोध कर रहा है और मसीहियों की एक ज़िम्मेदारी है प्रार्थना करना।
यदि परमेश्वर अपनी तऱफ से ही सब कुछ कर सकता, तो उसने हमें मत्ती 6 में प्रार्थना कैसे करनी है क्यों सिखाया? उसने हमें कहा कि प्रार्थना करो कि जैसे उसकी मर्ज़ी स्वर्ग में पूरी होती है पृथ्वी पर भी हो। यदि वह अपनी तरफ़ से यह कर सकता तो हमें प्रार्थना करने की ज़रूरत क्यों है?
कुछ चीजें हैं जो हम रोक और बदल सकते हैं - और हमें करनी भी चाहिए। कुछ चीजें ऐसी हैं जो आप कभी नहीं रोक पाएंगे। यदि आप सोचते हैं कि आप इस दुनिया में शैतान के विरोध के बिना रह लेंगे, आप ग़लत हैं। यूहन्ना16:33 कहता है, "संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।"इसके विरोध में प्रार्थना करना तो समय की बर्बादी होगी। ध्यान दें इस आयत में वह कहता है, "ढाढ़स बाँधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।" इसका अर्थ है कि उसकी जीत हमारी जीत है।
समस्या यह है कि लोग चुनौतीयों की वजह से निराश हो जाते हैं। चुनौतियां हैं और मैं उनका स्वागत नहीं करता, पर बेहतर है कि आप उनकी आदत डाल लीजिए। पौलुस कहता है, "पवित्र आत्मा मुझे स्पष्ट चेतावनी दे रहा है कि वहाँ बेड़ियाँ और कष्ट मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं।" क्या होता यदि पौलुस विरोधियों की वजह से निराश हो जाता? इसके विपरीत, उसने इस बात को मान लिया कि यह तो जीवन का हिस्सा है।
व्यवस्था-विवरण अध्याय 28 में यहाँ परमेश्वर ने आशीष और श्राप दिए हैं। आप इन आयतों में पाएंगे कि यह सब परमेश्वर पर निर्भर नहीं है। उसने ज़िम्मेदारी मानव जाति के ऊपर डाली है
व्यवस्था-विवरण 28:1 “यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाएँ, जो मैं आज तुझे सुनाता हूँ, चौकसी से पूरी करने को चित्त लगाकर उसकी सुने, तो (फ़िर) वह तुझे पृथ्वी की सब जातियों में श्रेष्ठ करेगा।"
क्या आप जानते हैं "यदि - फ़िर" का क्या मतलब होता है? यह अपने आप होने वाले कथन नहीं है। वह कह रहा है यदि तुम यह करोगे… फ़िर मैं यह करूँगा। और यह कहना ग़लत नहीं होगा, यदि नहीं करोगे, फ़िर नहीं करूँगा। आईये आयत 7 देखते हैं।
व्यवस्था-विवरण 28:7 “यहोवा ऐसा करेगा कि तेरे शत्रु जो तुझ पर चढ़ाई करेंगे वे तुझ से हार जाएँगे; वे एक मार्ग से तुझ पर चढ़ाई करेंगे, परन्तु तेरे सामने से सात मार्ग से होकर भाग जाएँगे।"
यह आयत कहती है कि आपके विरोध में शत्रु खड़े होंगे। अब, क्या वो यहाँ अपने लोगों से बात कर रहा है? क्या वो उन्हीं लोगों से बात कर रहा है जिनके बारे में उसने कहा कि मैं तुमको आशीषित करूँगा? हाँ। उसने कहा तुम्हारे शत्रु तुम्हारे विरोध में आयेंगे परंतु परमेश्वर उन्हें तुम्हारे साम्हने हरायेगा। हम शत्रु की चालों या प्रयासों से मुक्त नहीं हैं पर हम उसको जीतने दें या ना यह हमारे हाथ में है और हमें आक्रमण करने की ज़रूरत है।
प्रेरितों 13:1-2 "अन्ताकिया की कलीसिया में कई भविष्यद्वक्ता और उपदेशक थे; जैसे : बरनबास और शमौन जो नीगर कहलाता है; और लूकियुस कुरेनी, और चौथाई देश के राजा हेरोदेस का दूधभाई मनाहेम, और शाऊल। जब वे उपवास सहित प्रभु की उपासना कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने कहा, “मेरे लिये बरनबास और शाऊल को उस काम के लिये अलग करो जिसके लिये मैं ने उन्हें बुलाया है।”
मैं "जब वे उपवास सहित प्रभु की उपासना कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने कहा" पर ध्यान केंद्रित करना चाहता हूँ। आप परमेश्वर की उपासना कैसे करतें हैं? उसकी आराधना करने के द्वारा, अपनी आत्मा से उसकी आत्मा से बातें करने के द्वारा। आप जितनी अधिक उसकी उपासना या सेवा करेंगे, उतना अधिक वह आपके साथ बातचीत करेगा। ये पुरूष यह बात अच्छी तरह जानते थे। ध्यान दें कि वो उपवास भी कर रहे थे। उपवास बाईबल का हिस्सा है और कई बार बहुत ज़रूरी भी होता है।
यह आक्रमण करने का एक तरीका है। यदि आप कुछ नहीं करेंगे, तो कुछ भी नहीं होगा। जब तक आप शैतान को अपने आप को हराने का अवसर देतें रहेंगे वह आपको सारी उम्र लगातार हराता रहेगा। आपको आख़िरकार उठकर कुछ करना ही पड़ेगा।
आप सिर्फ़ आराम से बैठ नहीं सकते और उम्मीद करते रहें कि सब अच्छा ही होगा। यह तो मेरे मोटेपन की तरह है - कि मैं आशा करूँ कि यह चला जाये, पर ऐसा नहीं होता। यह हर हफ़्ते वहीं पर होता है। कभी तो ऐसा समय आना चाहिए जब आप इस से उकता जाएं, और आप इसके बारे में कुछ करने का विचार करें।
चीजें आपके जीवन में सिर्फ़ इसलिए नहीं होंगी क्योंकि परमेश्वर इन्हें चाहता है कि यह हों। यह तब होती है जब हम अपने आपको पुरी तरह परमेश्वर के वचन और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप ढाल लेते हैं।